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शुक्रवार, सितम्बर 20, 2024

क्यों असंभव है कैलाश पर्वत की चोटी तक पहुँचना?

क्यों असंभव है कैलाश पर्वत की चोटी तक पहुँचना? और क्यों कैलाश पर्वत की पर आज तक कोई भी नहीं पहुँच पाया है। इस असंभव से दिखने वाले कार्य के पीछे आखिर कारण क्या है? यह कोई नहीं जानता। किन्तु कुछ तथ्यों से इस विषय पर ध्यान देने में सहायता मिल सकती है। आइये जानते हैं ऐसा (Why is it Impossible to Climb Mount Kailash Hindi) क्यों है? साथ ही साथ कैलाश पर्वत कौन से देश में है तथा उसकी भौगोलिक स्थिति का भी अध्ययन करेंगे ।

क्यों असंभव है कैलाश पर्वत की चोटी तक पहुँचना?

हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

न सिर्फ सनातन धर्म बल्कि जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए इसका काफी अधिक महत्व है।

जब कोई व्यक्ति इस पर्वत पर चढ़ता है तो उसके साथ भौतिक और बौद्धिक स्तर पर काफी जटिल परिस्थितियाँ प्रकट होती हैं।

पर्वतरोहियों के नाख़ून और बाल तेज़ी से बढ़ने लगते है। व्यक्ति थकने लगता है, उसे कमजोरी और असमर्थता महसूस होती है। ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है।

वह दिनों दिनों तक पर्वत पर भटकता ही रहेगा। व्यक्ति जितना अधिक ऊपर चढ़ने का प्रयत्न करेगा उतना ही नीचे या जाएगा

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चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।

बौद्ध, जैन और हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार कैलाश पर्वत मेरु/सुमेरु बौद्ध, जैन और हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार जो कि ब्रह्मांड का आध्यात्मिक केंद्र है।

कैलाश पर्वत कौन से देश में है ?

कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं – ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है।

इस तीर्थ को अस्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है।

Kailash parvat highest peak

और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव (जैन संप्रदाय) ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसपर विजय प्राप्त की। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। 

युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है।

यहाँ इस पर्वत कैलाश पर भगवान शिव और उनके गण वास करते हैं यह हम सबको भली भांति ज्ञात है. चूँकि मनुष्य दैवीय ऊर्जा को नहीं सह सकता अतः कैलाश पर चढ़ना असंभव है.

कैलाश पर्वत की ऊँचाई कितनी है?

माउंट कैलाश कुल की ऊँचाई ६,६३८ मीटर (6638 Meters) है। 

क्या हमने कभी सोचा है की ऐसा कौन सा रहस्य है जो इस पर्वत पर चढ़ने से रोक रहा, क्या यह शारीरिक विफलता या अक्षमता के कारण है, या कोई ऐसा रहस्य भी है जो मानव चिंतन से परे है? आइए कैलाश पर्वत के कुछ ऐसे तथ्य जानते हैं जिस से कुछ हद तक इन प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने में सरलता होगी।

Mt. Everest 8848 मीटर (29029 फीट) की ऊंचाई पर है और इसके शिखर को 4,000 से अधिक लोगों द्वारा चढ़ा गया है, जबकि Mount Kailash 6638 मीटर (21778 फीट) है और कोई भी इस पर्वत को पूरा फतह नहीं कर पाया है।

क्या है कैलाश पर्वत का रहस्य?

क्या है कैलाश पर्वत का रहस्य? क्यों असंभव है कैलाश पर्वत की चोटी तक पहुँचना? कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। साथ ही इस पर्वत को रहस्यमयी, गुप्त और पवित्र माना गया है। इसलिए इसकी परिक्रमा करना शुभ और कल्याणकारी मानी गई है।  कैलाश पर्वत के बारे में तिब्बत मंदिरों के धर्म गुरु बताते हैं कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है।

हिन्दू, जैन, बौद्ध एवं Bon यह 4 प्रमुख धर्म हैं जो मानते हैं कि कैलाश पर्वत एक पवित्र स्थान है।

प्राचीन तिब्बती किवदंतियों और लेखों के अनुसार,

किसी भी नश्वर को कभी भी कैलाश पर्वत पर चलने की अनुमति नहीं दी जाती है, जहां बादलों के बीच, देवताओं का निवास है। वह जो पवित्र पर्वत की चोटी पर चढ़ाई शुरू करता है और देवताओं के चेहरे को देखने की हिम्मत करता है, उन्हें मृत्यु प्राप्त होती है।

तिब्बती किदंतियाँ और कहानियों के अनुसार
कैलाश पर्वत

जब उन्हें यह अहसास हुआ कि यात्रा सरल हो चुकी है, तभी अचानक से तेज़ बर्फबारी ने उनका यह काम असंभव कर दिया।

इस पर्वत के शिखर पर चढ़ने की कोशिश करने वाले कई पर्वतारोहियों में से एक Colonel Wilson ने बताया

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कैलाश पर्वत पर कैसे जाएं?

इस पर्वत तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता भारत में उत्तराखंड से होकर गुज़रता है लेकिन ये रास्ता बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां ज़्यादातर पैदल चलकर ही यात्रा पूरी हो पाती है।

दूसरा रास्ता जो थोड़ा आसान है वो है नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर कैलाश जाने का रास्ता।

क्या हुआ जब रुसी पर्वतरोहियों ने कैलाश पर चढ़ना शुरू किया?

सर्गेई सिस्टियाकोव, एक रूसी पर्वतारोही जो कैलाश पर न चढ़ पाने का एक चौंकाने वाला तर्क दिया है। वह कहते हैं कि

जब हम पहाड़ के आधार के समीप पहुंचे, तो मेरा दिल तेज़ हो गया था। मैं पवित्र पर्वत के सामने था, जो कह रहे थे कि ‘मुझे हराना असंभव है’। जिसके उपरांत मैं खुद को दुर्बल महसूस करने लगा और उस वातावरण में मुग्ध हो गया। जैसे हमने उतरना शुरू किया, मुझे मुक्ति महसूस होने लगी।

सर्गेई सिस्टियाकोव, द्वारा दिया गया बयान

जो लोग पहाड़ के आस-पास के क्षेत्र का दौरा करते हैं, वह अपने नाखूनों और बालों को 12 घंटों में लम्बाई महसूस करते हैं, जो सामान्य परिस्थितियों में 2 सप्ताह में होता है! ऐसा माना जाता है कि पहाड़ में एक हवा है जो तेजी से बुढ़ापे का कारण बनती है।

कुछ रूसी वैज्ञानिकों ने बहुत हद तक पहाड़ का अध्ययन किया है और इस विचार को सामने रखा है कि कैलाश पर्वत एक मानव निर्मित पिरामिड हो सकता है, अथवा यह बहुत बड़ी असामान्य घटना हो सकती है जो दुनिया के अन्य सभी ऐसे स्मारकों को जोड़ती है जहां ऐसी ही असामान्य चीजें हुई हैं या देखी गयी हैं.

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कैलाश पर्वत में चुंबकीय तरंगें:

कैलाश पर्वत को दुनिया का केंद्र माना जाता है जहाँ पृथ्वी और स्वर्ग के बीच, भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया के बीच स्वर्ग धरती से मिलता है। हाल के वर्षों में, वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में असामान्य चुंबकीय तरंगों की खोज की है, जो इस पर्वत को और भी रहस्यमय बनाते हैं।

चुंबकीय तरंगों के प्रकार:

माउंट कैलाश में दो प्रकार की चुंबकीय तरंगें देखी गई हैं:

  • पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से उत्पन्न तरंगें: ये तरंगें पृथ्वी के द्रव बाहरी कोर में होने वाली गतिविधियों से उत्पन्न होती हैं।
  • सौर चुंबकीय तूफानों से उत्पन्न तरंगें: ये तरंगें सूर्य से निकलने वाले उच्च ऊर्जा वाले कणों के पृथ्वी के वायुमंडल से टकराने से उत्पन्न होती हैं।

चुंबकीय तरंगों का प्रभाव:

माउंट कैलाश में चुंबकीय तरंगों का प्रभाव अभी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। कुछ संभावित प्रभावों में शामिल हैं:

  1. मानव स्वास्थ्य: कुछ लोगों का मानना ​​है कि इन तरंगों का मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कि सिरदर्द, थकान और अनिद्रा।
  2. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: चुंबकीय तरंगें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में हस्तक्षेप कर सकती हैं, जैसे कि जीपीएस और मोबाइल फोन।
  3. पर्यावरण: चुंबकीय तरंगें पक्षियों और जानवरों के व्यवहार को प्रभावित कर सकती हैं।
  4. अनुसंधान और अध्ययन: माउंट कैलाश में चुंबकीय तरंगों के बारे में अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है। वैज्ञानिक इस क्षेत्र में अधिक अध्ययन कर रहे हैं ताकि इन तरंगों के स्रोत, प्रभाव और संभावित खतरों को बेहतर ढंग से समझ सकें।

माउंट कैलाश में चुंबकीय तरंगें एक रोचक और रहस्यमय घटना है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि इन तरंगों का मानव स्वास्थ्य, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और पर्यावरण पर संभावित प्रभाव हो सकता है। इस क्षेत्र में अधिक शोध की आवश्यकता है ताकि इन तरंगों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके।

कैलाश पर्वत पर आज तक कौन पहुंच पाया ?

इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6,638  मीटर है. इसके चोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है, जिस पर सालों भर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है. कैलाश पर्वत पर चढना निषिद्ध माना जाता है परन्तु 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढाई की थी

कई अध्ययनों एवं तथ्यों के उपरांत भी आज तक कोई भी कैलाश पर्वत न चढ़े जाने का सटीक कारण नहीं बता पाया है। 6638 कि ऊंचाई को भी फतह करने में क्या अड़चने आ रहीं हैं यह कोई नहीं जनता। किन्तु यह भी बात सही है कि कुछ चीजों को रहस्य ही रहने दें तो ही अच्छा।

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अतिरिक्त जानकारी:

कुछ लोगों का मानना ​​है कि माउंट कैलाश एक शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र है और चुंबकीय तरंगें इस ऊर्जा का एक हिस्सा हैं।
कुछ हिंदू और बौद्ध धर्मग्रंथों में माउंट कैलाश का उल्लेख एक पवित्र पर्वत के रूप में किया गया है।
माउंट कैलाश एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है और हर साल हजारों लोग इस पर्वत की यात्रा करते हैं।

UHN News Desk
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