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बुधवार, सितम्बर 11, 2024

चमोली जल प्रलय: 2014 में ही विशेषज्ञों ने जता दी थी भूस्खलन की आशंका, भूकंप की वजह से भी है खतरा

आपदा के बाद क्षेत्र में पहुंचे लोग
आपदा के बाद क्षेत्र में पहुंचे लोग
उत्तराखंड में आई आपदा से सात साल पहले ही विशेषज्ञों ने यहां भूस्खलन की आशंका जता दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी पर्यावरणीय अध्ययन समिति ने अपनी रिपोर्ट में ऋषिगंगा सहित सात नदियों को भू-स्खलन का हॉटस्पॉट करार दिया था।
इसी आधार पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में इन नदियों पर पावर प्रोजेक्ट को खतरा माना था। यह बात अलग है कि अगर राह खुली होती तो इन नदियों पर अब तक दर्जनों प्रोजेक्ट अस्तित्व में आ चुके होते।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रवि चोपड़ा के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने पूरे क्षेत्र में निर्मित और निर्माणाधीन बांधों से होने वाले पर्यावरणनीय नुकसान पर वस्तित अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी थी।
इस रिपोर्ट को ही आधार बनाकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था। विशेषज्ञों ने बताया था कि असीगंगा, ऋषिगंगा, बिरही गंगा, बाल गंगा, भ्युदार गंगा और धौली गंगा भू-स्खलन के लिए हॉट स्पॉट है।
यहां कभी भी बड़ा भूस्खलन हो सकता है। लिहाजा, यहां पावर प्रोजेक्ट होने पर बड़ा खतरा भी हो सकता है। विशेषज्ञों की इसी बात को मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 भावी प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के साथ ही तमाम सख्तियां दिखाई थीं।
इसी समिति के सदस्य एवं गंगा आह्वान संस्था के संयोजक हेमंत ध्यानी ने कहा कि अध्ययन में जब यह साफ हो गया था कि यहां कभी भी भू-स्खलन हो सकता है तो इसके बाद भी सरकारों ने बचाव के इंतजाम नहीं किए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

भूकंप की वजह से भी है खतरा

पर्यावरण विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि चूंकि उत्तराखंड सीस्मिक जोन-4 और जोन-5 में आता है। इसलिए यहां बड़े भूकंप की वजह से भी नदियों में भू-स्खलन का ज्यादा खतरा है। मंत्रालय ने इस आधार पर यह भी साफ किया था कि कड़ी पर्यावरणीय अध्ययन के बाद ही किसी भी हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय स्वीकृति दी जाएगी।
UHN News Desk
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