Chipko Andolan 2.0: ऋषिकेश में 'वृक्ष रक्षा संकल्प', पद्मश्री से लेकर लोकगायिका तक, पर्यावरण प्रेमियों ने छेड़ा 'चिपको आंदोलन 2.0'

Uttarakhand News
Chipko Andolan 2.0 Rishikesh-Bhaniyawala Road four lane issue.
Photo courtesy: Amar Ujala

ऋषिकेश: विकास के नाम पर प्रकृति के विनाश के खिलाफ उत्तराखंड के ऋषिकेश में एक बार फिर जन आंदोलन की लहर उठी है। भानियावाला-ऋषिकेश मार्ग के चौड़ीकरण के लिए प्रस्तावित 3300 पेड़ों के कटान के विरोध में दो-दो पद्मश्री, लोकगायिका समेत बड़ी संख्या में पर्यावरण प्रेमी सड़क पर उतर आए। उन्होंने पेड़ों से चिपक कर उनकी रक्षा का संकल्प लिया और 'चिपको आंदोलन 2.0' का बिगुल फूंका।

'विकास' या 'विनाश'? सवाल उठाते पर्यावरणविद:

ऋषिकेश से भानियावाला के बीच 21 किलोमीटर लंबे मार्ग को फोरलेन बनाने की योजना है, जिस पर 600 करोड़ रुपये खर्च होंगे। लेकिन इस 'विकास' की कीमत 3300 पेड़ों को चुकानी पड़ेगी। 

पर्यावरणविदों का कहना है कि देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में पहले से ही पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा है। ऐसे में, इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों का कटान विनाशकारी साबित हो सकता है।

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'रक्षा सूत्र' बना आंदोलन का प्रतीक:

रविवार को सात मोड़ क्षेत्र में जुटे प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांध कर उनकी रक्षा का संकल्प लिया। महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें बचाने का संकल्प दोहराया। 

उनका कहना था कि यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि 'चिपको आंदोलन 2.0' की शुरुआत है।

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हस्ताक्षर अभियान और मांगे:

विरोध प्रदर्शन के दौरान हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया, जिसमें लोगों ने पेड़ों के कटान के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। प्रदर्शनकारियों ने सरकार से निम्नलिखित मांगें रखीं:

  • ऋषिकेश-जौलीग्रांट हाईवे परियोजना और पेड़ों की कटाई पर तत्काल रोक।
  • देहरादून के संवेदनशील क्षेत्रों में वनों के व्यावसायिक उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • देहरादून की पारंपरिक नहरों और नदियों का संरक्षण और पुनरुद्धार।
  • नई परियोजनाओं में हरित क्षेत्र के लिए 25% भूमि आरक्षित करना।
  • वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए त्वरित कार्रवाई।
  • वन अधिनियम में संशोधन कर जंगलों की आग पर नियंत्रण।

आंदोलन में शामिल प्रमुख चेहरे:

पद्मश्री डॉ. माधुरी बर्तवाल, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, लोकगायिका कमला देवी, इरा चौहान, अनूप नौटियाल, सूरज सिंह नेगी, नितिन मलेथा, इंद्रेश मैखुरी जैसे प्रमुख लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया।

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'प्रकृति बचेगी, तो हम बचेंगे':

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ पेड़ों को बचाने के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए है। उनका नारा है, "प्रकृति बचेगी, तो हम बचेंगे।"

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