महाभारत: कौन थे बब्रुवाहन जिन्होंने अकेले हराया था अर्जुन को, जानिए पूरी कहानी

Mandeep Singh Sajwan

महाभारत में एक से बड़े एक महायोद्धा थे, गंगापुत्र भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, अंगराज कर्ण, अश्वथामा, भीम, अर्जुन, दुर्योधन इत्यादि. किन्तु कुछ ऐसे भी योद्धा इस कथा से सम्बंधित हैं जिनका उल्लेख बहुत कम होता है. आज हम उन्ही में से एक महान योद्धा बब्रुवाहन की बात करेंगे, जिनकी कहानी वीरता, धर्मनिष्ठा और पारिवारिक संबंधों के महत्व को दर्शाती है। आइये जानते है उनके बारे में -

बब्रुवाहन कौन था?

बब्रुवाहन की कथा महाभारत के अश्वमेध पर्व के अध्याय 79 में वर्णित हैे। इसके अनुसार बब्रुवाहन पांडुपुत्र अर्जुन राजकुमारी चित्रांगदा के पुत्र थे। राजकुमारी चित्रांगदा मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री थी।

इस प्रकार बब्रुवाहन मणिपुर के राजकुमार हुए। मणिपुर के राजा चित्रवाहन जी ने बब्रुवाहन को अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस राज्य पर महाराज चित्रवाहन की मृत्यु के पश्चात बब्रुवाहन ने ही राज किया।

बब्रुवाहन की कथा ?

बब्रुवाहन की कथा शुरू होती है, जब अर्जुन अपने वनवास काल में मणिपुर गए थे, जहाँ उनकी भेंट मणिपुर राजकुमारी चित्रांगदा से हुई। दोनों में प्रेम हो गया और दोनों ने प्रेमविवाह किया। तत्पश्चात उनके पुत्र के रूप में बब्रुवाहन का जन्म हुआ।

अर्जुन के मणिपुर से चले जाने के बाद, राजकुमारी चित्रांगदा ने अकेले ही बब्रुवाहन का पालन-पोषण किया और उन्हें एक कुशल योद्धा बनाया। उन्होंने अपने पुत्र को धर्म और न्याय के मार्ग पर चलना सिखाया।

महाभारत युद्ध के बाद, युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ का घोड़ा घूमते हुए मणिपुर पहुंचा, जहाँ बब्रुवाहन ने उसे पकड़ लिया। जब अर्जुन को यह पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र को युद्ध के लिए ललकारा।

पिता-पुत्र के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें बब्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन को पराजित कर दिया। यह घटना बब्रुवाहन की वीरता और युद्ध कौशल को दर्शाती है।

babruvahan welcomes arjun with respect

अर्जुन और बब्रुवाहन का युद्ध: आखिर बब्रुवाहन ने अर्जुन को क्यों मारा?

युधिष्ठिर द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन्तेय अर्जुन की थी। वही पूरे राष्ट्र में अश्व के साथ भ्रमण कर रहे थे। अश्व जब मणिपुर राज्य में पंहुचा, तो बब्रुवाहन ने सम्मान पूर्वक अपने पिता का हाथ जोड़कर स्वागत-अभिनंदन किया।

जिसे महारथी अर्जुन, अन्यथा उनकी दुर्बलता समझ गये। अर्जुन तीखे स्वर में बोलने लगे की तुम क्षत्रिय कुल पर कलंक हो, जो तुमने शस्त्र त्याग दिया और हाथ जोड़ना स्वीकार कर दिया। इस घटना को बब्रुवाहन की सौतेली माँ उल्लुपी देख रही थी।

अर्जुन द्वारा पुत्र बब्रुवाहन के अपमान शब्द सुनकर उल्लुपी सामने आई और बब्रुवाहन को युद्ध करने के लिए सलाह दी, इस सलाह पर पिता-पुत्र के मध्य युद्ध शुरू हो गया।

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babruvahan fights with arjun and defeats him

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    यह युद्ध बहुत भयंकर था, बब्रुवाहन अपने संपूर्ण बल का प्रयोग कर रहे थे जबकि अर्जुन मात्र बब्रुवाहन के तीरों का उत्तर दे रहे थे। अर्जुन ने अपने किसी भी दिव्य शस्त्र का उपयोग नहीं किया।

    ullupi revives arjun with gem, arjun hugs his son babruvahan

    बब्रुवाहन ने अंततः अपने एक शक्तिशाली अस्त्र से अर्जुन को मार दिया, और बब्रुवाहन की जीत के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ. तत्पश्चात उल्लुपी ने अपने एक रहस्यमयी रत्न (मणि ) से अर्जुन को पुनर्जीवित कर दिया।

    बब्रुवाहन ने अर्जुन को इसलिए मारा क्योंकि अर्जुन ने उन्हे क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए, युद्ध करने का सुझाव दिया। कुछ स्रोतों के अनुसार अर्जुन, बब्रुवाहन को एक बालक समझ कर उसके साथ युद्ध एक क्रीडा की भांति कर रहे थे।

    जब अर्जुन को होश आया तो अर्जुन ने तुरंत अपने पुत्र बब्रुवाहन को गले लगा लिया। बब्रुवाहन से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और अपना आगे की यात्रा पूर्ण किया.

    बब्रुवाहन की कथा महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें धर्म, कर्तव्य और पारिवारिक संबंधों के महत्व के बारे में महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। बब्रुवाहन का चरित्र हमें यह सिखाता है कि हमें हमेशा अपने धर्म का पालन करना चाहिए और अपने परिवार के प्रति वफादार रहना चाहिए। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि वीरता और दया दोनों ही एक महान व्यक्तित्व के आवश्यक गुण हैं।

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