क्या आपने भगवान् विष्णु जी के वराह अवतार की कहानी सुनी है, रोमांच और भक्ति पूर्ण इस कथा में जितना धर्म का मर्म है, उतना ही आजकल लोगों में आश्चर्य और विश्लेषण का भाव भी है। सभी सोचते हैं की यह कथा अच्छी तो है लेकिन जो समुद्र धरती पर ही है उसी में पृथ्वी को कैसे छुपाया जा सकता है?
जरुरी नहीं है की आपके मन में परम पिता परमात्मा के लिए शंका हो, अपितु कुछ लोग तो अपनी जिज्ञासा मात्र के कारण भी ऐसा सोचते हैं, यदि ऐसा है तो इस लेख को अवश्य पढ़ें आपके सभी सवालों का उत्तर हम इस लेख द्वारा का देने की पूर्ण कोशिश करेंगे।
आइये जानते हैं वराह अवतार से जुडी कहानी के बारे में :
जय और विजय भगवान विष्णु जी के सातवें द्वार के द्वारपाल थे, एक दिन जब भगवान ब्रह्मा जी के मानसपुत्र सनकादिक मुनि भगवान से मिलने वैकुण्ठ गये; तो जय और विजय ने उन्हें रोका, जबकि सनकादिक मुनियों को किसी भी समय कहीं भी जाने की अनुमति थी।
उन्हें रोकना गलत था, लेकिन जय और विजय को इस बात का भान न रहा और सनकादिक मुनियों के समझाने पर भी उन्होंने मुनियों को प्रवेश से वर्जित किया; फलस्वरूप सनकादिक मुनियों ने जय-विजय को असुर हो जाने का शाप दिया की वे धरती पर जाकर असुर या राक्षस रूप धारण करेंगे।
जब उन्हें शाप मिला तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी और भगवान जी से ये वरदान माँगा की हमारा उत्थान (मोक्ष) आपके हाथों ही हो, जिसे करुणानिधान भगवान ने स्वीकार किया।
जय और विजय वैकुण्ठ से गिर कर दक्ष प्रजापति की पुत्री और दैत्य माता दिति के गर्भ में आ गये। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों की माँ दिति और पिता ऋषि कश्यप के पुत्र थे। दोनों जन्म से ही आकाश के सामान बढ़ने लगे। उनका शरीर पर्वतों सा विशाल था और शरीर लौह के समान मज़बूत हो गया।
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बलवान थे, इसी बात के चलते उन्हें और अधिक महत्वाकांक्षा होने लगी जिस कारण उन्हें संतोष नहीं था। वे संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों अपने को तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। हिरण्याक्ष स्वयं विष्णु भगवान को भी अपने से भी तुच्छ मानने लगा।
एक बार की बात है जब हिरण्यकशिपु का भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था। फलस्वरूप भगवान विष्णु ने वराह (सूकर) अवतार रूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को पुनः उसके कच्छ अथवा स्थान में पुनः स्थापित कर दिया।
यह कथा सुनने के पश्चात मन में जो प्रश्न उठता है वह यह की यदि समुद्र स्वयं पृथ्वी पर ही है तो फिर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को कहाँ छुपाया था? और भगवान विष्णु के वराह अवतार ने उन्हें कहाँ से मुक्त कर पुनःस्थापित किया?
इसलिए इस बात को आज के युग में एक दंतकथा के रूप में लिया जाता था। लोगों का ऐसा मानना था कि ये सरासर गलत और मनगढंत कहानी है।
भारत में सनातन धर्म है और सनातन धर्म किसी भी अफवाहों अथवा दंतकथाओं से नहीं बनता, ऐसा ही इस कहानी के उपलक्ष में हमें मिलता है।
नासा (NASA) जो अमेरिका की नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय वैमानिकी और अन्तरिक्ष प्रबंधन) एजेंसी है, के मुताबिक खगोल विज्ञान की दो टीमों ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए पानी के सबसे बड़े और सबसे दूर के जलाशय की खोज की है।
नासा के एक खोज के अनुसार:
"खगोलविदों ने पानी का सबसे बड़ा, सबसे दूर का जलाशय खोजा "
खगोलविदों की दो टीमों ने ब्रह्मांड में अब तक पाए गए पानी के सबसे बड़े और सबसे दूर के जलाशय की खोज की है। पानी, दुनिया के महासागर के सभी पानी के 140 ट्रिलियन गुना के बराबर, एक विशाल, स्वचालित ब्लैक होल को घेरता है, जिसे क्वासर (QUASAR) कहा जाता है, जो पृथ्वी से करीब 12 अरब से अधिक प्रकाश वर्ष दूर है।
कैलिफोर्निया के पासाडेना में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक मैट ब्रैडफोर्ड ने कहा, "इस क्वासर के आसपास का वातावरण बहुत ही अनोखा है, क्योंकि ऐसा लगता है की यही इस पानी के विशाल द्रव्यमान का उत्पादन कर रहा है।
"यह एक और बात की ओर इंगित करता है कि यह पानी ब्रह्मांड में हमेशा से व्याप्त है, यहाँ तक की ब्रह्माण्ड के बनने से पहले से भी। "
ब्रैडफोर्ड कई खोज करने वाली टीमों नेतृत्व कर चुकें हैं तथा अभी इनमें से एक का नेतृत्व कर रहे है। उनकी टीम का शोध नासा द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित है और एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में दिखाई देता है।
चित्र में दर्शाये लेख को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे : www.nasa.gov |
उस जलाशय का पानी, हमारी पृथ्वी के समुद्र के 140 खरब गुना पानी के बराबर है। जो 12 बिलियन से अधिक प्रकाश-वर्ष दूर है। जाहिर सी बात है कि उस राक्षस ने पृथ्वी को इसी जलाशय में छुपाया होगा।
इसे आप “भवसागर” भी कह सकते हैं। क्योंकि हिन्दू शास्त्र में भवसागर जो वर्णन किया गया है, वह कुछ इसी प्रकार है,
भवसागर एक ब्रह्मांडीय महासागर (Cosmic Ocean) या खगोलीय नदी (Celestial River) के रूप में समझा जा सकता है। यह कई संस्कृतियों और सभ्यताओं की पौराणिक कथाओं में पाई जाने वाली पौराणिक आकृति है।
जब मैंने यह पढ़ा तो मेरी भी जिज्ञासा का भी निराकरण हो गया। अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगा की हिन्दू धर्म सनातन धर्म है, इसका मूल किसी को ज्ञात नहीं। और जो इस ब्रह्मांड के रचयिता है, जिनकी इच्छा से ब्रह्मांड चलता है। उनकी शक्तियों की थाह लगाना एक तुच्छ मनुष्य के बल और बुद्धि की बात नही है।
यह भी पढ़ें:
- कैलाश पर्वत के राक्षस ताल की कथा, इस कारण यहां नहाने से किया जाता है मना
- क्या होता है गुरु चांडाल योग?
मनुष्य तो उनकी उपस्थिति और अस्तित्व पर भी संदेह करता है। सम्भवतः अभी कुछ भी प्रमाण किसी भी कथा को सत्यापित न करें पर इसका यह आशय नहीं की सत्यता पर संदेह किया जाये।