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राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड की पक्षी विविधता भले ही बेजोड़ हो, लेकिन देश के अन्य हिस्सों की भांति गौरैया प्रजाति में यहां भी कमी देखी जा रही है। गौरैया पक्षी को लेकर राज्य में क्या स्थिति है, इसे लेकर वन विभाग ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआइआइ) और बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) से सर्वे कराने का निर्णय लिया है। दोनों संस्थानों के मध्य इस संबंध में एमओयू हस्ताक्षरित हो चुका है, लेकिन कोविड ने सर्वे के कदम थाम दिए हैं।
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार कोविड के मद्देनजर परिस्थितियां सामान्य होने के बाद ही सर्वे कार्य शुरू हो पाएगा। दोनों संस्थान सालभर के भीतर सर्वे कर रिपोर्ट वन विभाग को उपलब्ध कराएंगे। इसके बाद गौरैया संरक्षण के लिए राज्यभर में प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड परिंदों का पसंदीदा स्थल है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देशभर में पाई जाने वाली पक्षियों की 1300 प्रजातियों से से करीब 700 यहां चिह्नित की गई हैं। इसके बावजूद गौरैया की संख्या में यहां भी कमी देखी गई है। हालांकि, विभाग के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि गौरैया की संख्या में वास्तव में कितनी कमी आई है।
गौरैया के दिखाई पडऩे के आधार पर इनकी संख्या में कमी का आकलन किया गया है। गौरैया को लेकर राज्य में वास्तविक स्थिति क्या है, किन-किन क्षेत्रों में यह कम देखी जा रही है, इसके कारण क्या है, ऐसे तमाम बिंदुओं को लेकर ही वन विभाग ने सर्वे कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) से 50 लाख रुपये की राशि अवमुक्त की गई है।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और कैंपा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएस सुहाग ने बताया कि डब्ल्यूआइआइ और बीएनएचएस को सर्वे का जिम्मा सौंपा गया है। सर्वे का कार्य मई से प्रारंभ होना था, लेकिन कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह शुरू नहीं हो पाया। उन्होंने बताया कि परिस्थितियां सामान्य होने पर वन विभाग के सहयोग से दोनों संस्थानों की टीमें सर्वे कार्य में जुटेंगी। सर्वे पूरा होने के बाद गौरैया को लेकर सही तस्वीर सामने आ सकेगी।