ऊषा श्रीवास्तव |
शिक्षा, सीख और दोस्ती उम्र या संसाधनों की मोहताज नहीं होती। जज्बा हो तो पढ़ाई में उम्र भी आड़े नहीं आती है। इसे साबित कर दिखाया उत्तराखंड के रुद्रपुर निवासी 71 वर्षीय ऊषा श्रीवास्तव ने। उन्होंने पहले प्रयास में ही इस उम्र में ऑल इंडिया बार परीक्षा पास कर ली है। शहर के आवास विकास निवासी ऊषा श्रीवास्तव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकिशोर श्रीवास्तव की बहू हैं। उनके पिता कौशल श्रीवास्तव भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
ऊषा श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1969 में उनका विवाह डॉ. विजय कुमार श्रीवास्तव से हुआ था। शादी के समय उनके पति पशु चिकित्सक थे। बाद में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और काश्तकारी में जुट गए थे। उन्होंने भी पति के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। वर्ष 1972 में उन्होंने रुद्रपुर डिग्री कॉलेज से एमए किया। इसके बाद 1983 में नेचुरोपैथी में डिप्लोमा किया और अपनी चार बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाई।
ऊषा की छोटी बेटी ने वर्ष 2013 में लॉ की पढ़ाई शुरू की तो उन्होंने भी लॉ करने की ठान ली और इसे पूरा भी कर लिया। तीन साल पहले पति की मौत के बाद उन्होंने खेतों में ही अपना समय बिताना शुरू कर दिया। फिर ऑल इंडिया बार परीक्षा का फॉर्म भरा। उन्होंने इस परीक्षा को पहली बार में ही पास कर लिया है।
इसका परिणाम पांच अप्रैल को आया था। उनकी इस उपलब्धि पर चारों बेटियां खुश हैं। वह कहती हैं कि दिनभर खेतों में काम करने के बाद वह रात को दो घंटे पढ़ाई करती थीं। उनके ससुर काशी विद्यापीठ में लालबहादुर शास्त्री के जूनियर थे। शास्त्री की उपाधि लेने के बाद उन्होंने श्याम प्रसाद मुखर्जी, जय प्रकाश नारायण के साथ काम किया और जेपी आंदोलन में शामिल रहे।
चार बेटियों को ऊषा ने दिलाया मुकाम
ऊषा के अंदर पढ़ाई के जज्बे ने उनकी चार बेटियों को भी मुकाम पर पहुंचा दिया। उनकी दो बड़ी बेटियां डॉ. शैलजा, डॉ. दीपिका श्रीवास्तव अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। एक बेटी आभा श्रीवास्तव चेन्नई में समाज सेविका हैं। सबसे छोटी बेटी अंशुल टंडन रुद्रपुर जिला अस्पताल में डाइटीशियन हैं। उनके पति निखिल टंडन सीए हैं। अंशुल बताती हैं कि पिता की मौत के बाद मां टूट चुकीं थीं। अपने को एकाग्र करने के लिए उन्होंने ऑल इंडिया बार एग्जाम की पढ़ाई शुरू कर दी। अंशुल ने बताया कि मां इन दिनों आयुर्वेदिक मीट्रिशीयन कोर्स की पढ़ाई भी कर रही हैं।
खेतीबाड़ी में हुआ लाखों का नुकसान, नहीं खोया हौसला
ऊषा श्रीवास्तव ने बताया कि वह अपनी कई एकड़ जमीन पर अलग अलग फसलें लगातीं हैं। कुछ समय पहले उन्होंने गुजरात से तीन हजार पौधे लाकर लगाए थे लेकिन अंधड़ में सभी नष्ट हो गए। इससे उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हुआ। इसके बाद भी उन्होंने हौसला नहीं खोया।