फोटो : प्रतीकात्मक तस्वीर |
उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर में हांफती लोगों की सांसों के बीच प्रदेश की स्वास्थ्य प्रणाली भी लड़खड़ा रही है। सरकार लगातार आईसीयू, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन बेड सहित तमाम सुविधाएं बढ़ा रही है, लेकिन डॉक्टर, नर्स व अन्य कर्मचारियों की कमी लगातार मुश्किलें पैदा कर रही है। हालांकि, अब उम्मीद जताई जा रही है कि एमबीबीएस और नर्सिंग अंतिम वर्ष के छात्रों के आने से स्थिति नियंत्रण में आ सकती है।
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मार्च में चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड ने चिकित्सकों के 763 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पूरी की। इनमें से केवल 403 चिकित्सकों का ही चयन हो पाया। आरक्षित और दिव्यांग श्रेणी के 359 पदों पर भर्ती ही नहीं हो पाई। उधर, नर्सों की भर्ती की प्रक्रिया भी अभी गतिमान है। प्रदेश में इस वक्त 2500 डॉक्टर और 1500 नर्सें हैं। ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में करीब 30 प्रतिशत संविदा के कर्मचारियों की सहायता से व्यवस्थाएं चलाई जा रही हैं। हालात यह हैं कि कोरोना से बचाव को सरकार ने काफी तेजी से स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाई हैं, लेकिन चिकित्सकों, नर्सों व अन्य स्टाफ की कमी लगातार आड़े आ रही है। स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी पहले ही कह चुके हैं कि लगातार स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है।
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स्टाफ के संक्रमित होने से और बढ़ रही चिंता
सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के बढ़ते दबाव के बीच डॉक्टर, नर्स व अन्य स्टाफ के संक्रमित होने की वजह से और समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे भी इंतजाम अभी नहीं हैं, जिससे उनकी जगह तत्काल दूसरी टीम लगाई जा सके। इसका परिणाम यह हो रहा है कि एक-एक वार्ड में एक ही डॉक्टर या नर्स पर 100 से 200 मरीजों का भार आ गया है। सरकार के लिए इस चुनौती से पार पाना ही सबसे बड़ी मुश्किल है।
अंतिम वर्ष के छात्रों से मिल सकती है राहत
केंद्र सरकार ने हाल ही में एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्रों और नर्सिंग अंतिम वर्ष के छात्रों को मैदान में उतारने की बात कही है। उत्तराखंड में भी अगर एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्रों को मैदान में लाया जाता है तो एक झटके में करीब 725 एमबीबीएस डॉक्टर की उपलब्धता हो जाएगी। इनमें से अगर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के 300 डॉक्टरों को हटा भी दें तो भी करीब 420 एमबीबीएस डॉक्टर उपलब्ध हो जाएंगे। वहीं, नर्सिंग के भी करीब 2500 पदों पर भर्ती के अलावा अंतिम वर्ष के करीब एक हजार नर्स और एक हजार पैरामेडिकल छात्र आ जाएंगे।
रिटायर्ड कर्मचारियों से भी मिल सकती है सुविधा
अगर स्वास्थ्य विभाग पिछले कुछ वर्षों में रिटायर हुए डॉक्टरों, नर्सों को दोबारा अस्पतालों में लगाने का प्रयास करता है तो यह बेहद कारगर साबित हो सकता है। इस दिशा में भी विभाग लगातार विचार कर रहा है। हालांकि अभी कोई ऐसी सफलता नहीं मिल पाई है। इनमें से कितने ड्यूटी पर लौटने के इच्छुक हैं, यह भी साफ नहीं है।
क्या हुआ सुधार
सुविधा- एक अप्रैल 2020- अब
आईसीयू बेड- 216- 1336
वेंटीलेटर- 116- 842
ऑक्सीजन बेड- 673- 6002
टाइप बी ऑक्सीजन सिलिंडर- 1193- 9917
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर- 275- 3275
ऑक्सीजन प्लांट- 01- 06
छह अस्पतालों में बन गए ऑक्सीजन प्लांट
एक अप्रैल 2020 को सिर्फ श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के पास अपना ऑक्सीजन प्लांट था। एक अप्रैल 2021 से मेला हॉस्पिटल हरिद्वार में था। वर्तमान में छह जगह ऑक्सीजन प्लांट शुरू हो चुके हैं। अब जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग, जिला अस्पताल रुद्रपुर, हेमवती नंदन बहुगुणा अस्पताल हरिद्वार, बेस हॉस्पिटल हल्द्वानी में भी ऑक्सीजन प्लांट संचालित हो रहा है। इन सभी प्लांट से 2330 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन की क्षमता सृजित कर ली गई है। मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी, मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा, जिला अस्पताल चमोली, एसडीएच नरेंद्र नगर, जिला अस्पताल अल्मोड़ा, जिला अस्पताल चंपावत, जिला अस्पताल उत्तरकाशी, जिला अस्पताल पिथौरागढ़ में भी जल्द ही ऑक्सीजन प्लांट शुरू हो जाएंगे।