सांकेतिक तस्वीर - फोटो : pixabay |
राज्य के मैदानी जिलों में कोरोना संक्रमण के मामले जितने अधिक कम होंगे, पहाड़ को उतनी ज्यादा राहत मिलेगी। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे पहाड़ में कोविड के गंभीर संक्रमित मरीजों को देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों के बड़े सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन और आईसीयू बेड तक नसीब नहीं हो रहे हैं।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों से मैदानी जिलों के सरकारी अस्पतालों में बेड को लेकर मारामारी है। ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दून मेडिकल कॉलेज कोविड केयर अस्पताल और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर कोरोना संक्रमितों के इलाज का भारी दबाव है। पहाड़ हो या मैदान हर कोई कोरोना संक्रमित होने पर हर कोई इन अस्पतालों की ओर दौड़ रहा है।
मैदानी जिलों में कम होते मामलों से कुछ राहत
राज्य के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में कोरोना संक्रमितों की संख्या में आ रही कमी से कुछ राहत है। पिछले पांच दिनों में प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार कमी आई है। पहाड़ में संक्रमित बढ़े हैं तो मैदानी जिलों में कम हो रहे हैं।
मैदानी जिलों में पांच दिनों में कोरोना के मामले
दिनांक -देहरादून - नैनीताल - हरिद्वार - यूएसनगर
14 मई - 1583 - 531 - 844 - 692
15 मई - 1423 -1037 - 464 - 384
16 मई - 1248 - 117 - 572 - 393
17 मई - 752 - 106 - 462 - 410
18 मई - 1226 - 442 - 555 - 372
(स्रोत : स्वास्थ्य विभाग का बुलेटिन)
1 से 18 मई तक पहाड़ में मामले बढ़े
जनपद - मामले
टिहरी - 6299
पौड़ी - 5961
उत्तरकाशी- 5562
चमोली- 4143
चंपावत - 2969
अल्मोड़ा - 3864
पिथौरागढ़ - 3047
बागेश्वर - 2092
रुद्रप्रयाग - 3357
कोविड कर्फ्यू से उम्मीद
प्रदेश सरकार कोविड कर्फ्यू के नतीजों को लेकर खासी आश्वस्त है। शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल कहते हैं कि कोविड कर्फ्यू के नतीजे कुछ दिनों में दिखने लगेंगे। सख्ती, नियमों में बदलाव और लोगों के सहयोग से संक्रमण की दर में धीरे-धीरे कमी आ रही है।
मैदानी जिलों में संक्रमण में कमी आएगी तो अस्पतालों पर दबाव कम होगा। पहाड़ में कोरोना संक्रमण के उन गंभीर रोगियों को इसका फायदा होगा, जिन्हें एम्स या दून अस्पताल में इलाज की जरूरत है। उन्हें आसानी से बेड मिल सकेंगे।
प्रदेश में पिछले 18 दिनों कोरोना संक्रमितों के 115718 मामले आए हैं। मैदानी जिलों में कुल संख्या के 68 फीसदी मामले हैं। जबकि 32 फीसदी मामले पहाड़ में हैं। मैदानी जिलों में मामले कम होने से इसका परोक्ष लाभ पहाड़ को स्वास्थ्य सुविधाओं की सुलभता के लिए रूप में मिल सकता है। बेड को लेकर मारामारी कम होगी।
- अनूप नौटियाल, संस्थापक, एसडीसी फाउंडेशन