ब्लैक फंगस |
ब्लैक फंगस के एक मरीज के इलाज के लिए 125 लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। मरीज को 25 दिन तक रोजाना छह इंजेक्शन दिए जाते हैं। अगर निर्धारित मात्रा में इंजेक्शन की डोज नहीं दी जाती तो उसका रिकवरी का समय भी बढ़ जाता है। वहीं ब्लैक फंगस के ऑपरेशन केस में इंजेक्शनों की कमी के चलते दोबारा संक्रमण फैलने से मरीज की जान पर खतरा बना रहता है।
उत्तराखंड में ब्लैक फंगस के मरीज बढ़ने के साथ लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शनों का संकट पैदा हो गया है। इससे चिकित्सकों को मरीजों के इलाज में समस्या आ रही है। एम्स ऋषिकेश की म्यूकोरमाइकोसिस कंट्रोल टीम के प्रभारी और ईएनटी सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने बताया कि ब्लैक फंगस के इलाज में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन और एम्फोटेरिसिन-बी प्लेन इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है।
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उन्होंने बताया कि लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन के साइड इफेक्ट कम होने के चलते इसका इस्तेमाल अधिक किया जाता है। डॉ. त्यागी ने कहा कि मरीज को पूरी तरह से स्वस्थ होने में 25 दिन लगते हैं। इस दौरान उसको रोजाना कम से कम 10 इंजेक्शन की डोज देना आवश्यक होता है। वहीं एम्फोटेरिसिन प्लेन इंजेक्शन की प्रतिदिन एक ही डोज काफी होती है। उन्होंने बताया संक्रमण को बढ़ने से रोकने और फंगस को समाप्त करने में इंजेक्शन का बड़ा अहम रोल होता है। अगर इंजेक्शन की पर्याप्त डोज नहीं मिलती तो संक्रमण के फिर से बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इससे खासकर ऑपरेशन के बाद मरीजों के लिए खतरा पैदा हो जाता है।
पहले दो से तीन हजार में मिल जाता था इंजेक्शन
लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन की एक वायल पहले दो तीन हजार रुपये में मिल जाती थी, लेकिन फंगस के मामले बढ़ने के साथ इंजेक्शन की कीमत पांच से सात हजार रुपये तक पहुंच गई है। ब्लैक में इंजेक्शन की कीमत 12 हजार रुपये तक पहुंच गई थी। हालांकि सरकार द्वारा इंजेक्शन की आपूर्ति की व्यवस्था तैयार करने के बाद ब्लैक में इजेक्शन की बिक्री की संभावना काफी हद तक कम हो गई है।