उत्तराखंड हिंदी न्यूज़ ब्यूरो , देहरादून | राजधानी में पहले मेट्रो, फिर रोपवे की योजना खटाई में पड़ने के बाद अब मेट्रो नियो (Metro Neo) चलाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने तैयार कर ली है।
दरअसल, उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रस्ताव पर सरकार ने सबसे पहले देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार को नवंबर 2017 में मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र घोषित किया। इसके बाद देहरादून में दो कॉरिडोर (आईएसबीटी से राजपुर और एफआरआई से रायपुर) में मेट्रो चलाने के लिए सर्वे किया गया। दूसरे चरण में हरिद्वार-ऋषिकेश को रखा गया था। इसके बाद योजना बदली और यहां रोपवे चलाने पर चर्चा हुई। इस बीच केंद्र सरकार ने छोटे शहरों में मेट्रो नियो चलाने की बात कही। लिहाजा, उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (यूकेएमआरसी - UKMRC) ने भी देहरादून में मेट्रो नियो चलाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा।
शुक्रवार को विधानसभा के कक्ष 120 में आयोजित शहरी विकास विभाग की समीक्षा बैठक में यूकेएमआरसी के एमडी जितेंद्र त्यागी ने बताया कि नियो मेट्रो की डीपीआर तैयार हो चुकी है। 13 अप्रैल को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बोर्ड बैठक होगी, जिसमें इसका प्रस्ताव रखा जाएगा। मेट्रो नियो 2051 तक ट्रैफिक लोड ले सकेगी।
शहरी विकास मंत्री बंशीधर भगत ने कहा कि लंबे समय से इस दिशा में केवल सर्वेक्षण आदि के काम चल रहे हैं। लिहाजा, मेट्रो नियो के काम में तेजी लाई जाए। बता दें कि केंद्र को देहरादून के अलावा गोरखपुर, प्रयागराज, जम्मू, श्रीनगर, राजकोट, बड़ौदा, कोयम्बटूर, भिवाड़ी जैसे शहरों ने मेट्रो नियो के प्रस्ताव भेजे हैं।
हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच लोकल ट्रेन या मेट्रो नियो
मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने सरकार के निर्देश पर हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच मुंबई की तर्ज पर लोकल ट्रेन चलाने पर काम शुरू कर दिया है। इसके लिए रेल मंत्रालय से बातचीत की जा रही है। यूकेएमआरसी की योजना है कि या तो रेलवे का ट्रैक डबल किया जाए या फिर मेट्रो नियो के लिए अलग ट्रैक तैयार करने के लिए 30 साल के लिए रेलवे की जमीन लीज पर ली जाए।
शुक्रवार को विधानसभा के कक्ष 120 में आयोजित शहरी विकास विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों ने यह जानकारी दी। सामान्य मेट्रो के मुकाबले मेट्रो नियो को बनाने में काफी कम खर्च आता है। अभी एक एलिवेटेड मेट्रो को बनाने में प्रति किलोमीटर का खर्च 300-350 करोड़ रुपये आता है। अंडरग्राउंड में यही लागत 600-800 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है।
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जबकि मेट्रो नियो या मेट्रो लाइट के लिए 200 करोड़ तक का ही खर्च आता है। चूंकि इसमें कम लागत आएगी, इसलिए इसमें यात्रियों को सस्ते सफर की सौगात भी मिलेगी। इसमें यात्रियों की क्षमता सामान्य मेट्रो से कम होगी, इसके लिए सड़क से अलग एक डेडिकेटेड कॉरिडोर तैयार किया जाएगा।
क्या है मेट्रो नियो (What Is Metro NeO)?
- - मेट्रो नियो सिस्टम रेल गाइडेड सिस्टम है, जिसमें रबड़ के टायर वाले इलेक्ट्रिक कोच होंगे।
- - इसके कोच स्टील या एल्युमिनियम के बने होंगे। इसमें इतना पावर बैकअप होगा कि बिजली जाने पर भी ट्रेन 20 किमी चल सकेगी।
- - सामान्य सड़क के किनारों पर फेंसिंग (Fencing) करके या दीवार बनाकर इसका ट्रैक तैयार किया जा सकेगा।
- - इसमें ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम होगा, स्पीड लिमिट भी नियंत्रण में रहेगी।
- - इसमें टिकट का सिस्टम क्यू आर कोड (QR Code) या सामान्य मोबिलिटी कार्ड से होगा।
- - इसके ट्रैक की चौड़ाई आठ मीटर होगी। जहां रुकेगी, वहां 1.1 मीटर का साइड प्लेटफॉर्म होगा।
- आईसलैंड प्लेटफॉर्म चार मीटर चौड़ाई का होगा।