कैग रिपोर्ट में खुलासा : उत्तराखंड के लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे

Ankit Mamgain

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 

 प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल शनिवार को विधानसभा सदन में रखी गई कैग की जिला और संयुक्त चिकित्सालयों की लेखा परीक्षा से भी सामने आया। यह सामने आया कि जिला अस्पताल रेफरल सेंटर बन कर ही रह गए हैं। यहां उपकरणों से लेकर डाक्टरों, नर्सों, दवा, पैथोलॉजी जांच आदि की भारी कमी है। इस तरह के संसाधनों का उपयोग सही तरीके से भी नहीं किया जा रहा है।


कैग ने लेखा परीक्षा के जरिए वर्ष 2014 से लेकर 2019 के बीच जिला, संयुक्त चिकित्सालयों और महिला अस्पतालों का हाल जाना। रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में लोगों के स्वास्थ्य क्षेत्र में जबरदस्त सुधार की जरूरत है। हाल यह है कि स्वास्थ्य मामले में उत्तराखंड 21 राज्यों में 17 वें नंबर पर है। पहला खोट कैग को नीति के स्तर पर ही नजर आया।


राज्य सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र की ओर से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए तय किए गए मानकों को ही अपने यहां लागू नहीं किया है। ओपीडी और भर्ती किए गए रोगियों के लिए समान मानक तय नहीं किए गए। ऐसे में कहीं किसी तरह के मानक लागू थे तो कहीं किसी दूसरे तरीके के मानक लागू किए गए।

भवन से लेकर डाक्टर, नर्स आदि की कमी सामने आई

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि सरकार अस्पतालों का प्रबंधन करने में भी असफल रही। भवन से लेकर डाक्टर, नर्स आदि की कमी सामने आई। 


प्रदेश में संस्थागत प्रसव की वैसे ही कमी है। इस पर जो संस्थागत प्रसव हो भी रहे हैं, वहां भी कई तरह की कमियां कैग को मिली। साल भर में प्रसव के दौरान मौत, गलत उपचार के मामले सामने आते ही रहते हैं। कैग की रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि अस्पतालों की कमियों के कारण यह हालात बद से बदतर हो रहे हैं। 


कैग रिपोर्ट यह भी बताती है कि प्रदेश के जिला और संयुक्त अस्पतालों में ट्रामा जैसे मामलों से निपटने की भारी कमी है। हाल यह है कि ओपीडी में परामर्श के लिए प्रत्येक रागी को औसत पांच मिनट का समय दिया जा रहा है।


उन्हें मुफ्त में दवाएं नहीं दी जा रही हैं। जरूरी दवाओं की भारी कमी है और जो दवाएं हैं भी उन्हें बांटा नहीं जा रहा है। अस्पतालों को पता ही नहीं हैं कि उन्हें क्या दवाएं रखनी हैं और क्या नहीं।

 स्वास्थ्य सेवाओं की लेखा परीक्षा में कैग ने यह पाया

स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तराखंड 21 राज्यों में 17वें स्थान पर है। सिर्फ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार ही इससे पीछे है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है।  


कैग ने की यह जांचें 


वर्ष 2019-20 के दौरान जिला चिकित्सालयों में विशेषज्ञता, डायग्नोस्टिक सेवाएं, ओपीडी, प्रसूती सेवाएं, रेडियोलॉजी, मनोचिकित्सा, स्त्रीरोग, आपातकालीन सेवाएं, गहन सेवाएं आदि की लेखा परीक्षा। 


कैग ने क्या पाया 


- लोगों के स्वास्थ्य जरूरतों के कई क्षेत्रों में सुधार की जबरदस्त गुंजाइश है। 


नीतिगत स्तर पर कमियां 


1. जिला चिकित्सालयों में दी जाने वाली सेवाओं और उपकरण, दवा आदि संसाधनों की स्वीकृति के मानक ही तय नहीं किए गए थे। राज्य सरकार ने न तो भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक अपनाए और न ही ओपीडी और अंत: रोगी विभाग की सेवाओं के लिए समान मानक तय किए। 

2. ओपीडी में रोगी बढ़ने या घटने के हिसाब से डाक्टरों की तैनाती नहीं की गई। नाक-कान-गला या ईएनटी डाक्टरों के स्वीकृत पदों के बावजूद पर्वतीय जिलों में तैनाती नहीं की गई। पर्वतीय जिलों में हड्डी रोग विशेषज्ञों की तैनाती स्वीकृत पदों के मात्र 50 प्रतिशत थी जबकि मैदानी जिलों में यह कमी नहीं थी। मैदानी जिलों में सामान्य सर्जन स्वीकृत पदों से अधिक तैनात थे। 

3. स्त्री रोग विभाग में 47 प्रतिशत में औषधि विभाग में 2014-19 के दौरान प्रत्येक रोगी को औसतम पांच मिनट से भी कम का परामर्श मिल पाया। दवा मुफ्त में देने का भी फायदा नहीं हुआ। ओपीडी के करीब 59 प्रतिशत रोगियों को अपने खर्च पर दवा खरीदनी पड़ी। ऑनलाइन पंजीकरण और ई चिकित्सालय सुविधा अस्पतालों में पूरी तरह से लागू नहीं थी। स्वास्थ्य महानिदेशक की ओर से मांग करने के बावजूद कम्प्यूटर, फर्नीचर, मानव संशाधन, नेटवर्किंग आदि के लिए बजट जारी नहीं किया गया। 

4. रेेडियोलॉजी, रक्त जांच आदि डायग्नोस का भी बुरा हाल

अस्पतालों में रेडियोलॉजी की पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। किसी भी अस्पताल में पैथोलॉजी की पूर्ण सुविधा उपलब्ध नहीं थी। एक्सरे में केंद्र सरकार की ओर से जारी रेडियोधर्मिता के मानक के संबंध में अनुमति कई जगह नहीं मिली। यह भी पाया गया कि पैथोलाजी के लिए जरूरी 60 तरह के उपकरणों में से सभी अस्पतालों में 48 से 78 प्रतिशत तक की कमी पाई गई।

5. भर्ती रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के भी बुरे हाल

सभी जिला अस्पताल भर्ती किए गए रोगियों को मनोचिकित्सा, ट्रॉमा और दुर्घटना चिकित्सा उपचार देने में विफल रहे। किसी भी जिला अस्पताल और संयुक्त चिकित्सालयों में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध नहीं पाई गई। बर्न वार्ड केवल चमोली और ऊधमसिंह नगर अस्पताल में था और अल्मोड़ा में आंशिक रूप से सर्जरी की जा रही है। विशेषज्ञ डाक्टरों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने या संबद्ध करने के कारण डाक्टरों की कमी की समस्या और विकट हो गई। 

6. पूर्णकालिक अधिकारी नहीं, फार्मासिस्ट भी 

दस से लेकर 43 प्रतिशत तक मौजूद

- वर्ष 2014 से लेकर 2019 तक किसी भी जिला अस्पताल या संयुक्त अस्पताल में पूर्णकालिक अधिकारी मौजूद नहीं था। दस से लेकर 43 प्रतिशत तक फार्मासिस्ट ही तैनात थे। ऊधमसिंह नगर को छोड़कर किसी भी ऑपरेशन थियेटर में तकनीशियन का पद स्वीकृत नहीं किया गया था। 

7. रोगियों को भर्ती करने में भी आनाकानी, ओक्यूपेंसी रेट बहुत कम

कम से कम 80 प्रतिशत बेड भरे होने के मानक से बहुत कम बेड ऑक्यूपेंसी रेट पाया गया। अस्पतालों में रेफरल रेट या उपचार के लिए बाहर भेजने की दर अधिक पाई गई। हरिद्वार और अल्मोड़ा जिला अस्पतालों में गुणवत्ता की भारी कमी पाई गई। 

8. जिला अस्पतालों में पाया गया कि विद्युत आपूर्ति को अबाधित रखने की कोई खास व्यवस्था नहीं की गई। सभी अस्पतालों में जेनरेटर पाए गए लेकिन उनका संचालन मैनुअल के हिसाब से नहीं किया गया। जिला महिला अस्पताल हरिद्वार, जिला अस्पताल हरिद्वार और चमोली में पानी की आपूर्ति को लगातार बनाए रखने का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया। 

10. संयुक्त चिकित्सालय ऊधमसिंह नगर को छोड़कर किसी भी अस्पताल में केंद्रीय कृत आक्सीजन की व्यवस्था नहीं थी। अस्पतालों में आक्सीजन सिलेंडर भी पर्याप्त नहीं पाए गए और हरिद्वार के जिला महिला अस्पताल और जिला अस्पताल में यह तय ही नहीं किया गया कि कितना बफर स्टॉक रखा जाना है। 

 

प्रदेश में मातृत्व की ही अनदेखी

महिला अस्पतालों में करीब 21 तरह की दवाइयां होनी चाहिए थीं। इनमेें से छह जरूरी दवाओं की भारी कमी पाई गई। 13 तरह की जरूरी दवाएं औषधि विभाग में महीनों तक उपलब्ध नहीं रहीं। सर्जरी के लिए जरूरी 16 तरह की दवाओं में से हरिद्वार में छह, संयुक्त चिकित्सालय चमोली में पांच दवाएं नहीं मिली। 


ऊधमसिंह नगर को छोड़कर किसी भी जिला अस्पताल में शिशु को लपेटने वाली चादरें नहीं थीं। प्रसूता महिलाओं के लिए सैनेट्री पैड और गाउन हरिद्वार और संयुक्त चिकित्सालय चमोली में उपलब्ध नहीं थे। 


स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी पाई गई और यह भी पाया गया कि इनकी तैनाती भी सही तरीके से नहीं की गई। अल्मोड़ा मेें 100 से भी कम प्रसव प्रतिमाह थे और ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार में यह संख्या काफी अधिक थी। इसके बावजूद अल्मोड़ा में स्त्री रोग विशेषज्ञ अधिक संख्या में तैनात थे। जिला महिला अस्पताल हरिद्वार में जून 2017 से लेकर दिसंबर 2017 तक निश्चेतक ही तैनात नहीं था, जबकि इस दौरान अस्पताल में 246 जच्चा बच्चा की अनदेखी, सेक्सन प्रसव किए गए। 


जिला अस्पताल अल्मोड़ा, चमोली और ऊधमसिंह नगर में स्वीकृत पदों की तुलना में नर्सों की संख्या काफी कम थी। जिला महिला अस्पतालों में हीमोग्लोबीन की जांच, दिल की जांच, क्रेनियोटॉमी या मस्तिष्क की हड्डी की सर्जरी से संबंधित उपकरण ही नहीं थे। 


हद तो यह हुई की ऊधमसिंह नगर में प्रसव की जटिलता और पहचान से संबंधित पार्टोग्राफ (गर्भस्थ शिशु की जांच आदि से संबंधित) तैयार ही नहीं किया गया। यहां 82 प्रसवों में से सिर्फ तीन में पार्टोग्रॉफ तैयार किए गए थे। 


समय पूर्व प्रसव के प्रबंधन में भी अनदेखी सामने आई। उपलब्ध होने के बावजूद प्रसव से पूर्व 204 महिलाओं को जरूरी इंजेक्शन लगाया ही नहीं गया। यह पाया गया कि अधिकतर रोगी साफ कपड़े, हाउस कोट आदि न मिलने से नाराज थे। 


नवजात शिशुओं की अनदेखी, जरूरी खुराक तक नहीं 


जिला और संयुक्त चिकित्सालयों में नवजात शिशुओं की देखरेख का कोई रिकार्ड नहीं पाया गया। यह पाया गया कि 60 में से केवल 27 नवजात शिशुओं को समय पर तीन जरूरी खुराक दी गई। 


कैग ने यह सिफारिशें की 


1. बेहद जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सबसे पहले कार्ययोजना तैयार की जाए।

2. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए केंद्र की ओर से जारी मानकों को लागू किया जाए और इन मानकों के हिसाब से ओपीडी, दवा की उपलब्धता, डॉक्टर, नर्स सहित अन्य स्टाफ की तैनाती आदि का प्रबंध किया जाए। 

3. गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए 24 घंटे की आपातकालीन सेवाओं को उपलब्ध कराया जाए। 

4. जिला अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के लिए सभी उपकरणों के साथ शिशु देखभाल इकाई की व्यवस्था की जाए। 

5. प्रति रोगी परामर्श समय की समीक्षा स्वास्थ्य महानिदेशक की ओर से की जाए। प्रदेश सरकार रोगियों को मुफ्त दवा उपलब्ध कराने के मामले में ठोस कदम उठाए। 

6. पैैथोलॉजी सेवाओं काल किसी बाहरी एजेंसी से सत्यापन कराया जाए। एक्सरे इकाइयों में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड से प्रमाणीकरण हासिल किया जाए। 

7. हर अस्पताल में रोग के पैटर्न और रोगियों के आगमन के आधार पर जरूरत की दवाओं का रिकार्ड तैयार किया जाए और यह सूची लगातार अपडेट की जाए। 

8. जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम 2016 का पालन किया जाए। 

9. हवा और सतह के संक्रमण की निगरानी और इसको नियंत्रित करने के लिए व्यवस्था की जाए। 

10. अस्पताल भवनों के रखरखाव की उचित व्यवस्था की जाए और दवाओं की गुणवत्ता की जांच की जाए। 

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