हिम तेंदुआ - फोटो : फाइल फोटो |
देश का पहला हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र उत्तरकाशी जनपद में आकार लेने जा रहा है। केंद्र निर्माण के लिए डिजाइन और ड्राइंग लगभग तैयार कर ली गई है। जिसके अनुरूप कार्यदायी संस्था ग्रामीण निर्माण विभाग द्वारा डीपीआर तैयार की जा रही है।
विशेषज्ञों की माने तो यह पूरी तरह से ईको फ्रेंडली होगा। ईंट की बजाए पत्थर, मिट्टी और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा। केंद्र के निर्माण में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए न्यूनतम कार्बन फुटप्रिंट का ध्यान रखा जाएगा।
यूएनडीपी(संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) के सहयोग से देश के चार राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर व सिक्किम में हिमालय की जैव विविधता, हिम तेंदुओं और उनके प्रवास स्थल के संरक्षण के लिए सिक्योर हिमालय परियोजना शुरू की गई है। इसी परियोजना के तहत उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क से लगे भैरोंघाटी लंका में हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र बनाने की कवायद शुरू हो गई है।
ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता विभुविश्वमित्र रावत ने बताया कि केंद्र के लिए डीपीआर बनाने का काम चल रहा है। जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए न्यूनतम सीमेंट, सरिया का प्रावधान किया गया है। केंद्र के निर्माण में ईंट की बजाए पत्थर, लकड़ी और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा। डीएफओ दीपचंद आर्य का कहना कि केंद्र निर्माण के लिए प्रक्रिया गतिमान है।
केंद्र निर्माण के लिए डिजाइन व ड्राइंग बन गई है। लगभग सवा तीन करोड़ रुपये से बनने वाले केंद्र की डीपीआर बनाने का काम आरडब्ल्यूडी कर रहा है। केंद्र के बनने से पर्यटक आकर्षित होंगे। ईको टूरिज्म व एडवेंचर को बढ़ावा मिलने से केंद्र से लगे हर्षिल, धराली व बगोरी गांवों के लोगों को भी रोजगार मिलेगा।
- सुशांत पटनायक, मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल
स्नो लैपर्ड ट्रैल शुरू करने की भी तैयारी
केंद्र के आस-पास स्नो लैपर्ड ट्रेल और ट्रैक विकसित करने की भी तैयारी है। जिसमें पर्यटकों को हिम तेंदुए को करीब से देखने और उसके वास स्थल को जानने का मौका भी मिलेगा। केंद्र में लर्निंग ब्लाक का निर्माण कर हिम तेंदुआ संरक्षण पर बनने वाली लघु फिल्में दिखाने, उसके वासस्थल और दुनिया में हिम तेंदुआ संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी भी दी जाएगी।
क्या है कार्बन फुटप्रिंट
कार्बन फुटप्रिंट का अर्थ किसी एक संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा किया गया कुल कार्बन उत्सर्जन होता है। यह उत्सर्जन कार्बन डाइ ऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है।