सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत
उत्तराखंड में विधानसभा में दो तिहाई विधायकों के समर्थन से बनी त्रिवेंद्र सरकार अपने चार साल के कार्यकाल में सबसे बड़े सियासी संकट से रू ब रू है। इसी के साथ भाजपा में भी असंतोष का पुराना ज्वालामुखी एक बार फिर सुलगने की चर्चाएं हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को अभूतपूर्व जनसमर्थन देते हुए, 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 विधायकों का तोहफा दिया।
इसके बाद निर्दलीय राम सिंह कैडा के समर्थन और एक मनोनीत विधायक को जोड़ते हुए, भाजपा के पास विधायकों का संख्या बल 59 को छू गया। इसका असर चार साल तक सरकार की स्थिरता के रूप में नजर आया। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत बिना किसी दबाव में सरकार चलाते नजर आए।
आलम यह था कि मंत्रीमंडल में तीन- तीन कुर्सी खाली होने के बावजूद, अपवाद को छोड़कर विधायकों की नाराजगी सार्वजनिक नहीं हुई। यहां तक की सीएम ने अपने मंत्रीमंडल के सदस्यों को भी जरा भी छूट नहीं दी। इस कारण पिछली सरकारों में बेहद मुखर रहने वाले मंत्री - विधायक तक मौजूदा सरकार में शांत बने रहे। लेकिन ताजा घटनाक्रम से स्थितियां एक दम बदली नजर आने लगी हैं।
दिग्गज नेताओं के अचानक देहरादून पहुंचने और फिर विधायकों से मुलाकात के बाद सरकार की स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं। इसे विधायकों के असंतोष से जोड़कर देखा जा रहा है। शनिवार का घटनाक्रम त्रिवेंद्र सरकार का अब तक का सबसे बड़ा सियासी संकट माना जा रहा है।