Maha Shivratri 2021 Puja Vidhi, Muhurat, Mantra, Samagri: कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करना सबसे आसान है। जो भक्त सच्चे मन से इनकी अराधना करता है उस पर कभी कोई संकट नहीं आता है। महाशिवरात्रि का दिन शिव अराधना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि इस बार 11 मार्च के दिन पड़ी है। जानिए इस खास पर्व की पूजा विधि, सामग्री, मंत्र और सभी जानकारी…
सामग्री लिस्ट: बेलपत्र, भांग, धतूरा, गाय का शुद्ध कच्चा दूध, चंदन, रोली, केसर, भस्म, कपूर, दही, मौली यानी कलावा, अक्षत् (साबुत चावल), शहद, मिश्री, धूप, दीप, साबुत हल्दी, नागकेसर, पांच प्रकार के फल, गंगा जल, वस्त्र, जनेऊ, इत्र, कुमकुम, पुष्पमाला, शमी का पत्र, खस, लौंग, सुपारी, पान, रत्न-आभूषण, इलायची, फूल, आसन, पार्वती जी के श्रंगार की सामग्री, पूजा के बर्तन और दक्षिणा। इन सब चाजों का प्रबंध एक दिन पहले ही कर लें।
पूजा विधि: पूजा करने से पहले अपने माथे पर त्रिपुंड लगाएं। इसके लिए चंदन या विभूत तीन उंगलियों पर लगाकर माथे के बायीं तरफ से दायीं तरफ की तरफ त्रिपुंड लगाएं। शिवलिंग का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें।
आप चाहे तो खाली जल से भी शिव का अभिषेक कर सकते हैं। अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहना चाहिए। शिव को बेलपत्र, आक-धतूरे का फूल, चावल, भांग, इत्र जरूर चढ़ाएं। चंदन का तिलक लगाएं। धूप दीपक जलाएं। शिव के मंत्रों का जाप करें।
शिव चालीसा पढ़ें। खीर और फलों का भोग लगाएं। शिव आरती उतारें। संभव हो तो रात्रि भर जागरण करें। घर के पास शिव मंदिर नहीं है तो आप घर पर ही मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनका पूजन कर सकते हैं।
पूजा मुहूर्त: महाशिवरात्रि पूजा के लिए निशीथ काल मुहूर्त सबसे शुभ माना गया है। वैसे भक्त रात्रि के चारों प्रहर में से किसी भी प्रहर में शिव पूजा कर सकते हैं।
निशिता काल पूजा समय – 12:06 AM से 12:55 AM, मार्च 12
अवधि – 00 घण्टे 48 मिनट्स
शिवरात्रि पारण समय – 06:34 AM से 03:02 PM
प्रथम प्रहर पूजा समय – 06:27 PM से 09:29 PM
द्वितीय प्रहर पूजा समय – 09:29 PM से 12:31 PM, मार्च 12
तृतीय प्रहर पूजा समय – 12:31 PM से 03:32 PM, मार्च 12
चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:32 PM से 06:34 PM, मार्च 12
मंत्र: ऊं त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
- शिवलिंग पर चढ़ाई गई चीजों को बिल्कुल भी ग्रहण न करें।
- महादेव का जलाभिषेक लोटे या किसी कलश से करें। शंख से न करें।
- महादेव की पूजा में तुलसी, चंपा या केतकी के फूल का प्रयोग न करें।
- इस दिन किसी की बुराई व चुगली न करें।
- पूजा के दौरान काले वस्त्र धारण न करें।
- ॐ नमः शिवाय।
- ॐ नमो नीलकण्ठाय।
- ॐ पार्वतीपतये नमः।
- ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
- ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
कश्मीरी पंडित शिवरात्रि पर भगवान भैरव की भी पूजा करते हैं। भगवान भैरव को मांस और मछली का भोग लगाने की परंपरा है। रीति के अनुसार शाकाहारी भोग भी लगाए जाते हैं। इसमें पांच-छह प्रकार की सब्जियां होती हैं। रात में पूजा अर्चना करने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
हिंदू धर्म में हर माह में मासिक शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन माह में आने वाली महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का खास महत्व है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था
व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में निद्रा नहीं लेनी चाहिए और रात्रि में भी शिवजी का भजन करके जागरण करना चाहिए। इस दिन पति और पत्नी को साथ मिलकर शिवजी के भजन करने चाहिए। ऐसा करने से उनके संबंधों में मधुरता बनी रहती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 11 मार्च की मध्यरात्रि 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। चतुर्दशी तिथि 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो कि 12 मार्च की दोपहर 3 बजकर 2 मिनट तक रहेगी।
महाशिवरात्रि के मौके पर रात्रि में जागरण करना का विशेष महत्व है। जागरण के बाद पूरे विधि-विधान से निशिथ काल में पूजा करनी चाहिए। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन 101 साल बाद बेहद ही खास संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस साल महाशिवरात्रि के दिन शिवयोग, सिद्धियोग और घनिष्ठा नक्षत्र का संयोग आने से त्योहार का महत्व काफी अधिक बढ़ गया है।
भगवान शिव की पूजा आराधना की विधि बहुत सरल मानी जाती है। माना जाता है कि शिव को यदि सच्चे मन से याद कर लिया जाये तो शिव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में भी ज्यादा ताम-झाम की जरुरत नहीं होती। ये केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर इनका जागरण करने मात्र से मेहरबान हो जाते हैं।
रात्रि प्रथम प्रहर की पूजा का समय शाम 06:27 से रात 09:29 बजे तक।रात्रि द्वितीय प्रहर की पूजा का समय रात 09:29 बजे से देर रात 12:31 बजे तक।रात्रि तृतीय की प्रहर पूजा का समय देर रात 12:31 बजे से 03:32 बजे तक।रात्रि चतुर्थ प्रहर की पूजा का समय रात 03:32 बजे से 12 तारीख की सुबह 06:34 बजे तक।शिवरात्रि व्रत का पारण समय - 12 मार्च को सुबह 06:34 बजे से दोपहर 03:02 बजे तक।
माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान ब्रह्मा के शरीर से भगवान शंकर रुद्र रुप में प्रकट हुए थे। ये भी माना जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी दिन हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने, व्रत रखने और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:’ अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र से संबंधित हैं। रुद्र भगवान शिव का प्रचंड रूप है मान्यता है कि इस रूप की विधि-विधान से पूजा करने पर ग्रह-नक्षत्रों की बाधाएं दूर होती हैं और साथ ही रोगों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
महाशिवरात्रि की एक कथा के अनुसार एक शिकारी भूख-प्यास से परेशान हो तालाब के किनारे जाकर बैठ गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं।
ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
सुबह उठकर स्नान करें। इसके बाद मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर उसके ऊपर बेलपत्र डालें। आक- धतूरे के फूल डालें। चावल आदि डालें और फिर इन्हें शिवलिंग पर चढ़ाएं। इस दिन शिव पुराण का पाठ करें और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करें। महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान बताया गया है।
ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे नरक से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है.