काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी में फूलदेई पर्व समापन |
फुलदेई, छम्मा देई,
दैणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारंबार नमस्कार…
(यह देहरी फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो। सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे।)
14 मार्च से शुरू हुए चैत का महीना उत्तराखंडी समाज के बीच विशेष पारंपरिक महत्व रखता है। चैत की संक्रांति यानी फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं। इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। फूल डालने वाले बच्चे फुलारी कहलाते हैं।
ह मौल्यार (बसंत) का पर्व है। इन दिनों उत्तराखंड में फूलों की चादर बिछी दिखती है। बच्चे कंडी (टोकरी) में खेतों-जंगलों से फूल चुनकर लाते हैं और सुबह-सुबह पहले मंदिर में और फिर हर घर की देहरी पर रखकर जाते हैं। माना जाता है कि घर के द्वार पर फूल डालकर ईश्वर भी प्रसन्न होंगे और वहां आकर खुशियां बरसाएंगे। इस पर्व की झलक लोकगीतों में भी दिखती है। उत्तराखंडी लोकगीतों का फ्यूजन तैयार करने वाले पांडवाज ग्रुप के लोकप्रिय फुल्यारी गीत में फुलारी को सावधान करते हुए कहा गया है-
चला फुलारी फूलों को,
सौदा-सौदा फूल बिरौला
भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां
म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लैयां
आज 21 मार्च को भगवान शिव की नगरी उत्तरकाशी में समापन किया गया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी में फूल चढ़ाने फुलरियों ने बढ़चढ़कर पूरे सफ्ताह प्रतिभाग किया, तथा आज दिन पर मंदिर के महंत श्री अजय पुरी जी ने सभी का आभार प्रकट किया।
सभी ने फुलारी का पूजन किया, तत्पश्चात उपहार देकर तथा आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें विदा किया गया।
इसी मौके पर बेटी पढ़ाओ - संस्कृति बचाओ का आह्वान किया गया, बेटियों तथा संस्कृति के प्रति अपनी जागरूकता के लिए कर्तव्यबध्तयता का संकल्प लिया गया
कुछ इस प्रकार होता है, फूलदेई पर्व का समापन
जब फुलारी को टीका लगाकर पैसे, गुड़, स्वाली-पकौड़ी (पकवान) या कोई भी उपहार देकर विदा किया जाता है। बिखौती के दिन उत्तराखंड में जगह-जगह मेले लगते हैं।