ऐपण के माध्यम से कुमाऊं को विश्वस्तरीय पहचान मिली

Ankit Mamgain

एसएसजे परिसर में हुई ऐपण कार्यशाला को संबोधित करते प्रो. देब सिंह पोखरिया।
एसएसजे परिसर में हुई ऐपण कार्यशाला को संबोधित करते प्रो. देब सिंह पोखरिया। 

अल्मोड़ा। हमारी लोक विरासत, हमारी अमूल्य धरोहर विषयक राष्ट्रीय ऐपण कार्यशाला का एसएसजे पसिर के दृश्यकला संकाय और चित्रकला विभाग में उद्घाटन हुआ। दृश्य कला संकाय के डॉ सोनू द्विवेदी ने कहा कि लोक से जुड़ी हुई चित्रों को इसके माध्यम से प्रदर्शन किया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि ऐपण के माध्यम से कुमाऊं को विश्व स्तरीय पहचान मिली है।


संस्कृति विभाग से कई योजनाएं लोककलाओं को बढ़ाने के लिए के लिए लाभदायक साबित हो रही हैं। कहा कि लोक कलाओं का भारतीय संस्कृति के लिए योगदान बहुत अधिक है। ऐसे में हमें युवा कलाकारों को इनकी जानकारी देनी होगी। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान ने कहा कि संस्कृति विभाग लोककलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रहा है। इस प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर आए कलाकारों को पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। कहा की संस्कृति विभाग कलाकारों को 15 हजार रुपये की वार्षिक छात्रवृत्ति दे रहा है।


मुख्य अतिथि प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया ने कहा कि विरासत हमारी पहचान है। ऐपण को हम आलेपन भी कहते हैं। लिप धातु से यह बना है। पूरे भारत में ये अलग अलग रूपों में है। चौक पूरना, अल्पना आदि कई नामों से इनको जाना जाता है। उन्होंने प्रदर्शनी की संयोजक और दृश्यकला संकाय को इस विभाग को प्रथम पंक्ति में ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि बच्चों ने काफी मेहनत कर हमारी संस्कृति, धरोहरों को जीवित रखा है। इस दौरान डॉ. ममता असवाल, डॉ. ललित चंद्र जोशी, कौशल कुमार, रमेश मौर्य, चंदन आर्य, संतोष मेर, जीवन जोशी, पूरन मेहता, नाजिम अली आदि शामिल हुए।

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