चमोली आपदा: हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के लिए कम तीव्रता वाले भूकंप भी खतरा

Ankit Mamgain

भूकंप प्रतीकात्मक तस्वीर
भूकंप प्रतीकात्मक तस्वीर

 हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के लिए छोटे भूकंप खतरा बने हैं। ढाई से तीन रिक्टर स्केल तक भूकंप आना आम बात है। इतनी कम तीव्रता के भूकंप महसूस नहीं होते हैं, लेकिन ये ग्लेशियरों में कंपन पैदा कर उनको कमजोर बनाते हैं, जिससे ग्लेशियर धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे में बड़ा भूकंप आने की दशा में ग्लेशियरों के टूटने की आशंका ज्यादा रहती है।



हिमालय के ग्लेशियरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने में छोटे भूकंप सबसे ज्यादा हानिकारक हैं। इसका मुख्य कारण भारतीय प्लेट लगातार एशियाई प्लेट की तरफ मिलीमीटर की दूरी में खिसक रही हैं। इससे धरती के अंदर हलचल पैदा हो रही है। हिमालयी क्षेत्र इन दोनों प्लेटों के बीच स्थित होने से भूगर्भीय दृष्टि से अति संवेदनशील है।



साथ ही हिमालयी पर्वत श्रंखला में हल्के भूकंप आते रहने से ग्लेशियर हिलकर कमजोर पड़ रहे हैं और भविष्य में आपदा के रूप में तबाही फैलाते हैं। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में धरती का तापमान बढ़ने से गंगोत्री, पिंडारी, नंदाकिनी और मंदाकिनी ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आई है। 


डायनामिक विस्फोट भी ग्लेशियरों के लिए खतरा

भूगोल के जानकार डॉ. राकेश गैरोला के मुताबिक डायनामिक विस्फोटों और टनल के निर्माण के दौरान धरती में होने वाली कंपन से भी ग्लेशियरों की पकड़ जमीन पर कमजोर पड़ जाती है। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के सहारे कमजोर पड़े ग्लेशियर खिसकने लगते हैं और नदी के रास्ते रोक देते हैं। इससे नदी घाटियों में झील बन सकती है, जो बाद में तबाही का कारण बनती है।

हिमालय के लिए घातक है प्रदूषण

पीजी कॉलेज कर्णप्रयाग में भूगोल विभाग के प्रोफसर डॉ. रमेश चंद्र भट्ट का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर में तेजी आ रही है। चार धाम वाले क्षेत्रों में प्रदूषण हिमालय के लिए घातक है। वन्य जीव, प्राकृतिक वनस्पति के दोहन से गढ़वाल हिमालय के इकोलॉजी सिस्टम को तेजी से नुकसान हो रहा है। 


ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप भी खतरनाक

विश्व शांति पुरस्कार प्राप्त पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप, संवेदनशील क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप और धरती के बढ़ते तापमान से लगातार प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अगर पर्यावरण की अनदेखी नहीं रोकी गई तो ग्लेशियरों के अलावा बुग्यालों को भी नुकसान पहुंच सकता है।


गढ़वाल विवि के प्रोफेसर डॉ. एमएस पंवार का कहना है कि भूकंप और मानवीय हस्तक्षेप काफी हद तक हमारे ग्लेशियरों के लिए नुकसानदेह है। जरूरत है कि हम प्रकृति की ओर से प्रदान किए गए प्राकृतिक संसाधनों का अनियोजित दोहन न करें।

Source

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!