स्वामी विवेकानंद जी |
"स्वामी विवेकानंद जी के विचारों की उत्तराखंड राज्य के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता"
उतिष्ठितः भारत के मूल विचार की प्ररेणा;
शिकागो में 1893 में दिये गये ऐतिहासिक भाषण के बाद ही स्वामी जी का स्वप्न बन गया था कि भारत वर्ष को आध्यात्मिक रूप से उपर उठाया जाये। उन्होंने हर भूमिका के बाद अगली भूमिका के लिए अपने व्यक्तित्व को और अधिक प्रखर और परिष्कृत बनाया
स्वामी जी के भाषणों का संग्रह ‘ कोलम्बो से अल्मोड़ा तक ’ नाम से प्रकाशित हुआ है। सम्भवतः उतिष्ठितः भारत के मूल विचार की प्ररेणा भी उन्हें अल्मोड़ा से ही प्राप्त हुई। स्वामी जी ने हिन्दी में अपना पहला भाषण राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा में दिया था।
यह सत्य है कि स्वामी विवेकानंद भारत के नव निर्माण की ईश्वरीय योजना को मूर्तरूप देने के लिए अवतरित हुए तो यह भी सच है उनके साथ आत्मीय जुड़ाव अनुभव करने वाले व्यक्ति भी आये । उनके आध्यात्मिक विचार भाषणों संभाषणों के माध्यम से प्रगट होता रहा है
स्वामी विवेकानंद का अल्मोड़ा संबोधन
स्वामी विवेकानंद जब दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे तो अल्मोड़ा में उनका भव्य स्वागत हुआ। पूरे नगर को सजाया गया था और लोधिया से एक सुसज्जित घोड़े में उन्हें नगर में लाया गया और 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित किया। इस स्थान पर तब पांच हजार लोग एकत्र हो गए थे।
स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में कहा था ‘यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का प्रदेश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है। यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है और संभवत: मैं आप लोगों को भली भांति यह समझाने में समर्थ हुआ हूं कि क्यों मैंने अन्य स्थानों की तुलना में इसी स्थान को सार्वभौमिक धर्मशिक्षा के एक प्रधान केंद्र के रूप में चुना है।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। अतएव यहां एक केंद्र अवश्य चाहिए। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। मुझे आशा है कि एक न एक दिन मैं इसे स्थापित कर सकूंगा।’ उल्लेखनीय है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्यों स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई। जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है।