पद्म पुरस्कार |
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश में पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। उत्तराखंड के खाते में इस बार सिर्फ दो पुरस्कार आए हैं वह भी पद्म श्री के रूप में। चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को पद्म श्री देने की घोषणा की गई है।
इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए प्रेम चंद शर्मा को पद्म श्री मिला है। गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्हें ये पुरस्कार दिया जाएगा। इस वर्ष 119 पद्म पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। इस सूची में 7 पद्म विभूषण, 10 पद्म भूषण और 102 पद्मश्री पुरस्कार शामिल हैं।
बता दें कि साल 2019 में कला क्षेत्र में जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण और अनूप साह को पद्म श्री से नवाजा गया था। वहीं, 2020 में चिकित्सा क्षेत्र से डॉ. योगी एरन और सामाजिक कार्यकर्ता कल्याण सिंह रावत को पद्म श्री दिया गया था।
वहीं, 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में शहीद देहरादून निवासी एएसआई मोहन लाल को भी राष्ट्रपति पुलिस पदक (मरणोपरांत) से सम्मानित किया जाएगा ।
डा. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को 40 साल की सेवा का इनाम मिला
डा. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को चिकित्सा जगत में उनकी 40 साल की सेवा का इनाम मिला है। डा. संजय को कई देशों से फेलोशिप भी मिली है। सर्जरी के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए उनका नाम लिम्का बुक और गिनीज बुक में भी शामिल किया गया है। सामाजिक क्षेत्र में उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे पिछले कई वर्षों से राजपुर रोड स्थित जाखन में संजय ऑर्थोपेडिक एंड स्पाइन सेंटर का संचालन कर रहे हैं।
31 अगस्त 1956 को जन्मे डा. संजय ने वर्ष 1980 में जीएसबीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर से एमबीबीएस किया। इसके बाद काफी समय तक उन्होंने पीजीआई चंडीगढ़ और सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सेवा दी। इस बीच उन्होंने जापान, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन समेत कई देशों से फेलोशिप हासिल की और आगे बढ़ते रहे। दुनिया के कई प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल्स में उनके शोध लेख प्रकाशित हुए। उन्होंने दुनिया के कई देशों में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर भी व्याख्यान दिए।
समाज सेवा में भी बनाई पहचान
डा. संजय ने चिकित्सा जगत के साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ठ पहचान बनाई है। पोलियो, मस्तिष्क पक्षाघात, बच्चों में लकवा और विकलांगता के खिलाफ वह लगातार काम कर रहे हैं। अपने 40 वर्ष के लंबे मेडिकल करियर में अपनी टीम के साथ उन्होंने पांच हजार से अधिक बच्चों को जीने की नई उम्मीद दी है। इसके अलावा सड़क दुर्घटना से होने वाली शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक क्षति को लेकर भी वो लंबे समय से जागरूकता अभियान चला रहे हैं। कोरोना काल में भी जरूरतमंदों को बेहतर उपचार दिलाने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किए।
चिकित्सा जगत में भी पाया सम्मान
डा. संजय का नाम चिकित्सा जगत में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। वह इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन की उत्तराखंड शाखा के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं। इसके अलावा वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी जुड़े हैं। वे उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में सलाहकार और एचएनबी बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय की एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य भी रह चुके हैं। अभी वे एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य हैं।
झोली में कई उपलब्धियां और पुरस्कार
डा. संजय के नाम पर कई उपलब्धियां और पुरस्कार हैं। 2005 में हड्डी का सबसे बड़ा ट्यूमर निकालने का विश्व रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हुआ। इसके अलावा 2002, 2003, 2004 व 2009 में सर्जरी में कई अभिनव उपलब्धियों के लिए उन्हें लिम्का बुक में स्थान मिला। जिनमें 98 वर्षीय हाई रिस्क मरीज की सफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, 88 वर्षीय बुजुर्ग की स्पाइन सर्जरी आदि शामिल है। उनकी इन उपलब्धियों के लिए उन्हें सैकड़ों पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें सिकॉट फाउंडेशन फ्रांस अवार्ड, प्रेसिडेंट एप्रिसिएशन अवॉर्ड, डॉ. दुर्गा प्रसाद लोकप्रिय चिकित्सक पुरस्कार, उत्तराखंड रत्न, उत्तरांचल गौरव, नेशन बिल्डर अवार्ड, मसूरी रत्न, हेल्थ आइकन, नेशनल हेल्थकेयर एक्सिलेंस अवॉर्ड, बेस्ट ऑर्थोपेडिक सर्जन इन इंडिया अवॉर्ड, सिक्स सिग्मा हेल्थकेयर एक्सिलेंस अवॉर्ड आदि शामिल हैं।
पहाड़ में अनार की खेती में अभिनव प्रयोग के लिए विख्यात हैं प्रेम चंद
उत्तराखंड के प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा पद्मश्री अवॉर्ड पाकर गदगद हैं। चकराता विकासखंड के अटाल गांव के रहने वाले 63 वर्षीय प्रेमचंद परंपरागत खेती बाड़ी के साथी कृषि विविधीकरण पर काम कर रहे हैं। पद्म पुरस्कार से पहले प्रेम चंद को राष्ट्रीय कृषक सम्राट सम्मान भी मिल चुका है।
प्रेम चंद्र शर्मा को पद्मश्री अवॉर्ड मिलने पर पूरे परिवार में खुशी का माहौल है। प्रेमचंद शर्मा ने अनार सेब नाशपाती के साथ ही टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च आदि की खेती में उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्होंने सबसे पहले अटाल क्षेत्र में अनार कलमें लगा कर एक नई प्रजाति की पैदावार करने में कामयाबी हासिल की थी।
प्रेमचंद का कहना है कि पद्मश्री अवार्ड के लिए उन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया था। केंद्र सरकार ने सम्मान के लिए चयनित किया, यह उनके लिए गौरव की बात है। पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई की समस्या के चलते प्रेम चंद शर्मा ने प्लास्टिक मल्चिंग और टपक सिंचाई का प्रयोग कर सफलतापूर्वक अनार की खेती की। पहाड़ में खेती की उनकी इस तकनीक से मृदा में नमी बनी रही और 25 से 30 फीसदी तक उत्पादन बढ़ा |