हरिद्वार कुंभ मेला |
कुंभ महापर्वों का संबंध देवगुरु बृहस्पति और जगत आत्मा सूर्य के राशि परिवर्तन से जुड़ा है। लेकिन जिस कुंभ राशि से कुंभ पर्व मुख्य रूप से जुड़ा है उस राशि में बृहस्पति केवल हरिद्वार कुंभ में ही प्रवेश करते हैं। प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बृहस्पति कुंभस्थ नहीं होते।
हरिद्वार में गुरु के कुंभस्थ होने के कारण माना जाता है कि चारों कुंभ नगरों में कुंभ का पहला महापर्व हरिद्वार में पड़ा था। उसी के बाद अन्य कुंभ नगरों में कुंभ शुरू हुए। शास्त्रों के मुुताबिक जिस समय चार नगरों में कुंभ कलश छलके, उस समय कलश की सुरक्षा बृहस्पति और सूर्य के जिम्मे थी। ये दोनों ग्रह राशियों के हिसाब से चारों कुंभ नगरों में कुंभ का कारण बने।
बृहस्पति को कुंभ राशि में आने का परम मुहूर्त सौभाग्य केवल हरिद्वार में प्राप्त हुआ। हरिद्वार ही एकमात्र ऐसा कुंभ नगर है जहां बृहस्पति के कुंभ और सूर्य के मेष राशि में आने पर कुंभ महापर्व और मेला लगता है। शाही स्नान होते हैं। जबकि प्रयाग में बृहस्पति के वृष और सूर्य के मकर राशि में आ जाने पर कुंभ पर्व का महायोग आता है।
इसी प्रकार उज्जैन कुंभ मेला तब होता है जब बृहस्पति का आगमन सिंह और सूर्य का प्रवेश मेष राशि में हो जाए। नासिक में भी बृहस्पति के सिंह और सूर्य के भी सिंह राशि में पर कुंभ का मेला लगता है। सूर्य जहां बारह महीनों में सभी बारह राशियों की यात्रा पूरी कर लेते हैं, वहीं बृहस्पति को एक राशि से दूसरी में जाने में बारह वर्ष लगते हैं।
यही कारण है कि कुंभ मेला एक स्थान पर बारह वर्ष बाद आता है। यहां यह भी खास है कि उज्जैन और नासिक के कुंभ मेले करीब एक वर्ष में ही होते हैं। खगोलीय गणित और राशि प्रवेश पर निर्भर कुंभ मेला केवल हरिद्वार में ही कुम्भस्थ होता है। प्रयाग कुंभ को वृषस्थ, उज्जैन और नासिक कुंभ मेलों को सिंहस्थ कहते हैं। कुंभस्थ होने के कारण हरिद्वार कुंभ को ही पहला कुंभ माना जाता है।