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भारत का सबसे लम्बा मोटरेबल सिंगल लेन डोबरा-चांठी झूला पुल |
डोबरा-चांठी देश का सबसे बड़ा मोटरेबल झूला पुल है जो अपने आप में आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है. इस पुल से टिहरी झील की मनोरम छटा देखते ही बनती है. प्रतापनगर, लंबगांव और धौंतरी में रहने वाली करीब 3 लाख से ज्यादा की आबादी को टिहरी जिला मुख्यालय तक आने के लिए पहले 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी. इस पुल के शुरू होने के बाद अब यह दूरी घटकर आधी रह जाएगी.
14 वर्षों का वनवास हुआ खत्म
प्रतापनगर, लंबगांव और धौंतरी क्षेत्रवासियों के लिए इस पुल का निर्माण होना, वनवास खत्म होने जैसा है. क्योंकि उनके सपनों का पुल 14 साल के लम्बे इंतजार के बाद बनकर तैयार हो गया है. कई कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट से अपना हाथ खींच लिया था. वर्ष 2016 में एक साउथ कोरियन कंपनी ने इसके निर्माण का जिम्मा उठाया और 4 वर्षों के बाद डोबरा-चांठी सस्पेंशन ब्रिज बनकर तैयार है.
पुल निर्माण में खर्च हुए 3 अरब
डोबरा-चांठी वासियों समस्याओं को देखते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने इस पुल को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा. सालों से निर्माणाधीन इस पुल के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने एकमुश्त बजट जारी किया, जिसका परिणाम भी जनता के सामने है. इस पुल की क्षमता 16 टन भार सहन करने की है और उम्र 100 वर्षों तक. इस पुल की कुल चौड़ाई 7 मीटर है, जिसमें मोटर मार्ग की चौड़ाई 5.5 मीटर और फुटपाथ की चौड़ाई 0.75 मीटर है. इसके निर्माण में 3 अरब रुपए खर्च हुए हैं.
वर्ष 2006 में शुरू हुआ था काम
डोबरा-चांठी सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण साल 2006 में शुरु हुआ था, लेकिन काम के दौरान कई समस्याएं सामने आने लगीं. गलत डिजायन, कमजोर प्लानिंग और विषम परिस्थितयों के चलते 2010 में इस पुल का काम बंद हो गया था. साल 2010 तक इस पुल के निर्माण पर लगभग 1.35 अरब खर्च हो चुके थे. दोबारा साल 2016 में लोक निर्माण विभाग ने 1.35 अरब की लागत से इस पुल का निर्माण कार्य शुरू कराने का निर्णय लिया.
पुल 2020 में बनकर तैयार हुआ
पुल के डिजाइन के लिए अंतराष्ट्रीय टेंडर निकाला गया. साउथ कोरिया की कंपनी योसीन को यह टेंडर मिला. कंपनी ने पुल का नया डिजाइन तैयार किया और तेजी से पुल का निर्माण शुरू किया. साल 2018 में एक बार फिर काम में व्यवधान पड़ा, जब निर्माणाधीन पुल के तीन सस्पेंडर अचानक टूट गए.